महफूज़ रहे जहाँ बिटिया मेरी, कोई ऐसा भी कोना देखा? महफूज़ रहे जहाँ बिटिया मेरी, कोई ऐसा भी कोना देखा?
बालिका गृह में भी बेटियाँ महफूज़ नहीं, ऐसी जगह इज्ज़त लूटी जाएगी, कभी सोचा न था । बालिका गृह में भी बेटियाँ महफूज़ नहीं, ऐसी जगह इज्ज़त लूटी जाएगी, कभी सोचा न था...
मानव को बनाकर शायद अब विधाता भी बहुत, बहुत पछताते हैं। मानव को बनाकर शायद अब विधाता भी बहुत, बहुत पछताते हैं।
कभी सामाजिक परम्पराओं की आड़ पर। पीती वह रोज अपमान का कड़ुआ जहर कभी सामाजिक परम्पराओं की आड़ पर। पीती वह रोज अपमान का कड़ुआ जहर
दुनिया में नहीं आने देंगे, कोख में ही, बेटी को मार देंगे! दुनिया में नहीं आने देंगे, कोख में ही, बेटी को मार देंगे!